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आठ कोड़ गूंगा / कन्हैया लाल सेठिया

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आठ कोड़ बण्या थे गूंगा
किंयां हुसी निसतारो ?

मायड़ भासा राजस्थानी
कळपै, बीखो भोगै,
हाळण बणगी निज रै घर में
दूजा थाळ अरोगै,

नहीं बावड़ै बगत गयोड़ो
चेतो, भविस विचारो !

बिना मानता मीरा री माँ
किण नै दरद बतावै ?
निज री जांघ उघाड़्यां निज नै
लाज घणैरी आवै,

जूझो, हक रै खातर, थे मत
मिनख जमारो हारो !

सूख्यां जावै बिना नेह आ
संजीवण री बूंटी,
थे कंचन रै मेहां भीजो
थांरी तिसणां झूठी,

उठो, ओळखो आपो थांरो
घणमोला मोट्यारो !