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आत्म बोध / सौरभ
Kavita Kosh से
बचपन था तो जमकर खेला
पढ़ाई से जी चुराया
दुख आया तो जम कर रोया
सुख आया तो हंस दिया जमकर
आई जवानी तो नैन लड़ाए
परदेसी से जिया लगाया
विसाल का देखा सुख भी
हिज्र का दुख भी समझा
जब फिसल गई उम्र हाथ से
तब बैठ के ध्यान लगाया
दर्दों से फिर पछताया
तब का काम किया अब जाकर।