आदमी / सुदर्शन वशिष्ठ
सच्चा आदमी
कभी झूठ नहीं बोलता
हो जाता है उसका झूठ
सच से ज्यादा अर्थवान
युधिष्ठिर की तरह
जो आदमी को
बना देता है हाथी
हाथी को आदमी
बहुत खतरनाक हो जाता है तब
सच्चा आदमी।
झूठा आदमी
कभी सच नहीं बोलता
हो जाता है उसका सच
झूठ से ज्यादा निरर्थक
झूठ ही समझा जाता है
'शेर आया! शेर आया!' का सच
बहुत लाचार हो जाता है तब
झूठा आदमी।
अच्छा आदमी
अच्छा आदमी सुबह दफ्तर जाता है
शाम को आता है घर सीधे
अच्छा आदमी नहीं भटकता इधर-उधर
नहीं मापता माल रोड
चलता है नाक की सीध में
अच्छा आदमी झूठ को झूठ नहीं कहता
सच को सच नहीं बोलता।
वह राजनीति पर बात नहीं करता
न ही बोलता अफसरों की बाबत
अच्छा आदमी नहीं बोलता किसी के खिलाफ
न ही बनता किसी का पक्षधर।
अच्छा आदमी नहीं पूछता सवाल
अच्छा आदमी नहीं देता जवाब
अच्छा आदमी नहीं देखता देखकर
नहीं सुनता सुनकर
बापू का बँदर है अच्छा आदमी।
अच्छा आदमी बस हो सकता है एक बार भर्ती
अच्छा आदमी नहीं कर सकता तरक्की
अच्छा आदमी नहीं बन सकता पत्रकार
अच्छा आदमी नहीं हो सकता सरकार।
आशावादी कहते हैं
बची हुई हैं अच्छे आदमी की कुछ नस्लें
जो बीज रही हैं फसलें।
अच्छे आदमी पर टिका है तन्त्र
पूरा का पूरा प्रजातन्त्र।
बड़ा आदमी
कद में बड़ा नहीं होता
बड़ा दिखता है।
डाकू तस्कर स्मग्लर
भ्रष्टाचारी
यहाँ तक कि अनाचारी
बन सकता है बड़ा आदमी
नेता-अभिनेता भी
बन सकता है बड़ा आदमी
राजा तो होता है बड़ा आदमी
दरबारी भी बन सकता है बड़ा आदमी।
नहीं बन सकता तो
मज़दूर नहीं बन सकता बड़ा आदमी
गरीब नहीं बन सकता बड़ा आदमी
सुदामा नहीं बन सकता
खेवट नहीं बन सकता
ये सब पायदान हैं।
बड़ों के काम भी बड़े
बड़ा आदमी नहीं करता छोटे काम
मेंढ की बात नहीं करता बड़ा आदमी
खेत की बात करता है
घर-गाँव की बात नहीं करता
देश की बात करता है।
होते हैं बड़े सुख छोटे-दुख
बड़े आदमी के
होती है कहानी बड़ी ज़िन्दगानी छोटी
बड़े आदमी की
होती है समझदानी बड़ी नादानी छोटी
बड़े आदमी की।
बड़ा आदमी करता है बड़ी बात
चलता है तन कर तेज़ चाल
खाली होकर भी सदा दिखता व्यस्त
हिलाता हाथ दूर से
स्वीकारता अभिवादन सिर हिलाकर
संवाद पर होता वाचाल
विवाद पर रहता चुपचाप।
कोई नियम नहीं है तय
बड़ा बनने के लिये
कई ज़िंदगी लगाते हैं
बड़ा नहीं बनते
कभी अचानक ही बन जाता है
कोई बड़ा आदमी।
बस एक बार है मुश्किल
बनना बड़ा आदमी
फिर बड़ा आदमी
बड़ा ही रहता है।
छोटा आदमी
कद में छोटा नहीं होता
छोटा दिखता है।
छोटा आदमी बनता नहीं
होता है
जब सभी बौने हों
आसाँ है होना बड़ा आदमी
छोटे आदमियों से ही
बनता है एक बड़ा आदमी
छोटे न हों तो कैसे बनेगा
कोई बड़ा आदमी।
छोटा आदमी भी तो कर देता है
कभी बड़ी बात
छोटा आदमी भी तो कर देता है
कभी बड़ा काम
नहीं माना जाता उसे बड़ा आदमी।
छोटे घरों में रहते हैं छोटे आदमी
छोटे कपड़े पहनते हैं छोटे आदमी
छोटे रास्तों पर चलते हैं
छोटी बाते सोचते हैं
देखते हैं छोटे-छोटे सपने
पर होते हैं उनके
बेगाने कम ज्यादा अपने।
होते हैं छोटे सुख बड़े दुख
छोटे आदमी के
होती है कहानी छोटी जिन्दगानी बड़ी
छोटे आदमी की
होती है समझदानी छोटी नादानी बड़ी
छोटे आदमी की।
छोटा आदमी करता है छोटी बात
चलता है झुक कर सुस्त चाल
दूर से करता नमस्कार
बाहर से रहता मौन
मन में बोलता
बात-बात तोलता
भेद नहीं खोलता।
सच है यह भी
बड़े आदमी तो होते हैं दो चार
छोटे आदमियों से ही
चलता है सँसार।
घटिया आदमी
छोड़ता पसीने की गँध
रहता पाबंद
पहनता पैबंद
गाँठ में रखता दुख
गुड़ की तरह बाँटता सुख।
ज़मीन पर चलता है
चढ़ता नहीं सीढ़ी
पीता है बीड़ी।
घटिया आदमी
करता है बढ़िया काम
फिर भी होता बदनाम।
बढ़िया आदमी
गन्धाता गुलाब-सा
रम्भाता बैल-सा
हरी घास चुगता
सूखे से डरता
रूमाल में रखता सुख
प्रसाद सा बाँटता दुख।
हवा में उड़ता है
चढ़ता सीढ़ी दर सीढ़ी
नहीं पीता बीड़ी।
बढ़िया आदमी
करता है घटिया काम
फिर भी बनता महान।
सरकारी आदमी
सरकार में आते ही
बन जाता बेवकूफ
चाहे हो कितना चुलबुला
पृथ्वी मापने वाला दो पैरों से
आसमान में करने वाला छेद हाथों से
धीरे-धीरे हो जाता सुस्त नकारा निखट्टू।
धूल से घिरा
बैठा रहता कूड़े कबाड़ में चुपचाप
साँस रोके खड़ा होता शौचालय में
कुछ नहीं बोलता।
दफ्तर का हर कमरा बन जाता स्टोर
जहाँ दरियों के नीचे छिपाया जाता कूड़ा
साफ नहीं होते कभी शीशे
काली हो जातीं मेज़ें।
आदमी हो कितना ही ऊर्जावान
सरकार के सहवास से हो जाता
एकदम निकम्मा
बस फैलता जाता साँड की तरह।
करना चाहते हुए बहुत कुछ
कर नहीं सकता
लिखना चाहता बहुत कुछ
लिख नहीं सकता
सरकारी कलम नहीं लिख पाती
साफ-साफ।
घूमता स्वच्छंद
हो जाता उदण्ड
चरता सभी खेत
खा जाता साग-पात
माँस-भात
रेत और तेल
नहीं कोई नकेल।
सरकारी होते ही आदमी
बन जाता बापू का बँदर।
सब कुछ जाता अँदर
बन जाता एक तँत्र।