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आदमी और स्वप्न / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
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आदमी का प्यार सपनों से

सनातन है !

मृत्यु के भी सामने
वह, मग्न होकर देखता है स्वप्न !
सपने देखना, मानों,
जीवन की निशानी है ;
यम की पराजय की कहानी है !

सपने आदमी को
मुसकराहट — चाह देते हैं,
आँसू — आह देते हैं !

हृदय में भर जुन्हाई-ज्वार,
जीने की ललक उत्पन्न कर,
पतझार को
मधुमास के रंगीन-चित्रों का
नया उपहार देते हैं !
विजय का हार देते हैं !
सँजोओ, स्वप्न की सौगात,

महँगी है !

मिली नेमत,
इसे दिन-रात पलकों में सहेजो !
‘स्वप्नदर्शी’ शब्द
परिभाषा ‘मनुज’ की,
गति-प्रगति का
प्रेरणा-आधार;
संकट-सिंधु में
संसार-नौका की
सबल पतवार ;
गौरवपूर्ण सुन्दरतम विशेषण।
स्वप्न-एषण और आकर्षण
सनातन है, सनातन है !
आदमी का प्यार सपनों से

सनातन है !