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आदमी की आंखों में / हरीश भादानी

आंखों में घृणा - होठ पर चेंटी लहू की भूख,
हाथ में हथियार लेकर
आदमी में से निकलता है जब
आदमी जैसा ही
मगर आदिम
तभी हो जाता है
उसका ना कातिल - जात कातिल
और उसका धर्म - सिर्फ हत्या।

वह पहले
अपने आदमी को मार कर ही
मारता है दूसरे को

आदिम के हाथों
आदमी की हत्या का दाग
आदिम को नहीं
आदमी की दुनिया को लगा
फिर लगा
फिर-फिर लगा है।

सोच के विज्ञान से
धनी हुए लोगो
लहू के गर्म छीटों से
इस बार भी
चेहरा जला हो
गोलियों ने तरेड़ी हो
मनिषा पर पड़ी
बर्फ की चट्टान तो आओ
अपने ही भीतर पड़े
आद्फिम का बीज ही मारें
पुतलियों में आ बैठती
घृणा की पूतना को छलनी करें
आंखों को बनाएं झील
और देखें.... देखते रहें
आदमी की आंखों में
आदमी ही चेहरा!