भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी को खुशी से / कमलेश भट्ट 'कमल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी को खुशी से ज़ुदा देखना
ठीक होता नहीं है बुरा देखना।

पुण्य के लाभ जैसा हमेशा लगे
एक बच्चे को हँसता हुआ देखना।

रोशनी है तो है ज़िन्दगी ये जहाँ
कौन चाहेगा सूरज बुझा देखना।

सर-बुलन्दी की वो कद्र कैसे करे
जिसको भाता हो सर को झुका देखना।

ज़िन्दगी खुशनुमा हो‚ नहीं हो‚ मगर
ख़्वाब जब देखना‚ खुशनुमा देखना।

सारी दुनिया नहीं काम आएगी जब
काम आएगा तब भी खुदा‚ देखना।