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आन्हर जिनगी ! / यात्री
Kavita Kosh से
आन्हर जिनगी
सेहंताक ठेंगासँ थाहए
बाट घाट, आँतर-पाँतरकें
खुट खुट खुट खुट....
आन्हर जिनगी
चकुआएल अछि
ठाढ़ भेल अछि
युगसन्धिक अइ चउबट्टी लग
सुनय विवेकक कान पाथिकें
अदगोइ-बदगोइ
आन्हर जिनगी
नांगड़ि आशाकेर कान्ह पर हाथ राखि का’
कोम्हर जाए छएँ ?
ओ गबइत छउ बटगवनी,
तों गुम्म किएक छएँ ?
त’हूँ ध’ ले कोनो भनिता !
आन्हर जिनगी
शान्ति सुन्दरी केर नरम आंगुरक स्पर्शसँ
बिहुँसि रहल अछि!
खंड सफलता केर सलच्छा सिहकी
ओकर गत्र-गत्रमे
टटका स्पंदन भरि देलकइए।