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आपकी तलवार को धोखा हुआ / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’
Kavita Kosh से
आपकी तलवार को धोखा हुआ
या मिरी दस्तार को धोखा हुआ
नाव को लहरें बहाकर ले गयीं
आपकी पतवार को धोखा हुआ
कान के होते हुये बहरी रही
आज फिर दीवार को धोखा हुआ
क्या ग़ज़ब है अश्क भी बिकने लगे
वाक़ई.....बाज़ार को धोखा हुआ
कब बरसता है भला अब्र-ए-फ़रेब
हाँ, दिल-ए-बेज़ार को धोखा हुआ