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आपको रोका है कब मेरे जनाब / प्राण शर्मा
Kavita Kosh से
आपको रोका है कब मेरे जनाब|
शौक़ से पढिये मेरे दिल की क़िताब।
बात सोने पर सुहागे-सी लगे
सादगी के साथ हो कुछ तो हिजाब।
साथ दुःख के होता है सुख कुछ-न-कुछ
कब जुदा रहता है काँटे से गुलाब।
छोड़ अब दिन-रात का गुस्सा सभी
कम न पड़ जाए तेरे चेहरे की आब।
वास्ता हर सुख से पड़ता है ज़रूर
कौन रखता है मगर इसका हिसाब।
धुंध पस्ती की हटे तो बात हो
कुछ नज़र आए दिलों के आफ़ताब।
रोज़ ही इक ख़्वाब से आए हैं तंग
प्राण परियों वाला हो कोई तो ख़्वाब।