भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपसे जब सामना होने लगा / इकराम राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आपसे जब सामना होने लगा,
ज़िन्दगी में क्या से क्या होने लगा।

चैन मिलता है तड़पने से हमें,
दर्द ही दिल की दवा होने लगा।

ज़िन्दगी की राह मुश्किल हो गई,
हर क़दम पर हादसा होने लगा।

दोस्तों से दोस्ती की बात पर,
फ़ासला दर फ़ासला होने लगा।

जो ग़जल में शेर बनकर के रहा,
काफ़ियों से वो ज़ुदा होने लगा।

जैसे हो तस्वीर इक दीवार पर,
आदमी अब क्या से क्या होने लगा।

ये तुम्हारी याद है या ज़ख्म है,
दर्द पहले से सिवा होने लगा।