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आप अधूरों की कहते / नईम
Kavita Kosh से
आप अधूरों की कहते,
पर क्या भविष्य है इन पूरों का?
सगा नहीं रह गया समय अब
कहीं किसी का।
आदम की औलाद
हुआ जा रहा बिजूका।
हुए पचासों साल न पलटा भाग्य
हमारे इन घूरों का,
हम तो जन्मों से कुजात,
पर क्या होगा मीरा, सूरांे का?
किसकी खोज-खबर लेने जाए हरकारा?
तूती की मानिंद बज रहा है नक्कारा।
कहीं ठिकाना नहीं रह गया
बच्चों की परियों, हूरों का।
फितरत के मारे हैं सारे लँगड़े-लूले,
अपने में ही मगन फिर रहे फूले-फूले।
मूसा होने का दम भरते-
पता नहीं जिनको तूरों का।