भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आप ख़ुशकिस्मत हैं / गिरिराज किराडू
Kavita Kosh से
आप ख़ुशकिस्मत हैं कि चीख़ सकेंगे
जब पूरा संसार किसी उलझे हुए उड़नखटोले से लटक कर
किसी और आकाशगंगा में बसने के लिए
फ़रार होने की कोशिश कर रहा होगा
आप वापिस इसी आकाशगंगा की ओर कूदेंगे,
कूदते हुए आपके पास कोई पेराशूट न होगा
पर आपको यह याद होगा कि आप सीधे शून्य में भी गिर सकते हैं
आप दूसरों को देखेंगे और शायद मुस्कुराने की कोशिश भी करेंगे
और हाँ
आपके चेहरे पर होगी सन्तुष्टि कि और कुछ न सही साहस तो है आपके पास
उधर हम मेंसे अधिकांश यूँ बेफ़िक्र होंगे
मानो ये किसी हो चुकी दुर्घटना का दृश्य है
अपना भविष्यफल हमने इतना देख लिया था
कि हमारे पास भविष्य की भी एक स्मृति थी