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आबादी विषाद पी रही है / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
आबादी विषाद पी रही है
क़दम-क़दम पर है
बारूदी सुरंग
अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा
भूमिगत गुस्सा
लाशें पहचानी नहीं जातीं
चेहरे के भी होते हैं
अनगिनत टुकड़े
पहचानते हैं तो सिर्फ़ गिद्ध
जो आकाश से
उतरते हैं हुजूम बाँधकर
बयान और जाँच
जाँच और रिपोर्ट
आयोग और कमेटी
सच और झूठ
देश इसी बासी
दिनचर्या में जीता है
हत्या के बाद तलाशी
और सुरक्षा के कड़े प्रबन्ध
चन्द बेरोज़गार युवकों की
गिरफ़्तारी
फ़र्जी आत्मसमर्पण
और शान्ति का दिखावा
हिंसा की शराब उन्होंने ही पिलाई
उन्होंने ही उन्माद फैलाया
उन्होंने कहा देश उनकी जेब में
रहना चाहिए
उन्हीं के चेहरे पर मृतकों के लिए
शोक है
क्या अब बाज़ार में शोक का
मुखौटा भी बिकता है ।