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आभार / सुधा उपाध्याय
Kavita Kosh से
उन सबका आभार
जिनके नागपाश में बंधते ही
यातना ने मुझे रचनात्मक बनाया।
आभार उनका भी
जिनकी कुटिल चालें
चक्रव्यूह ने मुझे जमाने का चलन सीखाया।
उनका भी ह्दय से आभार
जिनके घात प्रतिघात
छल छद्म के संसार में
मैं घंटे की तरह बजती रही।
मेरे आत्मीय शत्रु
तुमने तो वह सबकुछ दिया
जो मेरे अपने भी न दे सके।
तुम्हारे असहयोग ने
धीमे-धीमे ही सही
मेरे भीतर के कायर को मार दिया।