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आभार / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
हमें भले ही कुछ न मिला हो लेकिन यह जीवन तो मिला है
जिसके लिए मैं अपने माता-पिता का आभारी हूँ
उनके नाते मै इस दुनिया में आया
उनकी दी हुई आँखों से देखी यह दुनिया
उन्होने ज़मीन पर चलने के लिए दिए पाँव
हाथों के बारे में उन्होने बताया कि यह शरीर का
सबसे ज़रूरी अंग है जिससे तुम बदल सकते
हो जीवन
क्या क्या है इस दुनिया में -- पहाड़, नदियाँ आकाश परिन्दे और समुन्दर
बच्चे इस दुनिया को करते है गुलजार
इस दुनिया में रहती है स्त्रियाँ
वे कुछ न कुछ रचती रहती हैं
वे अपने गर्भ में छिपाए रहती है आदमी के बीज
वक्ष में दूध के झरने
ईश्वर हैं हमारे माता-पिता
वे हमे गढ़ते हैं
हमारे भीतर करते हैं प्राण-प्रतिष्ठा