भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आभा / अजित कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सागर की लहराती केशराशि में
दमकते कर्णफूल-सी
वह सीपी...
कितनी शुभ्र और स्वच्छ,
लालिम आभा से युक्त,
बिलकुल दिव्य !

सराहते हुए उसे
हम थक न रहे थे
तभी झलका उसी में से
उभरता,
टेढ़ी-मेढ़ी लंबी टाँगों
और
बदसूरत शक्ल वाला
आक्टोपस केकड़ा !

हमें स्तंभित करता हुआ ।