आमा मऊर महके / पीसी लाल यादव
आमा मउर महके,
कुहु-कुहु कारी कोइली कुहके।
फूल-फूल के रस ल, बिलवा भौंरा चुहके।
बाग-बाग में बगरे हे बसंती बहार।
गुन-गुन, गुन-गुन गूंजथे भौंरा के गंुजार॥
चींव-चींव चिरई चिरगुन, चाराचर चिंहुके,
आमा मउर महके, कुहु-कुहु कारी कोइली कुहके।
महर-महर ममहावत हे मस्ती में महुवा
कुलक-कुलक कुलकत हे कछार के कउहा॥
आगी-अंगरा कस परसा, धरसा में दहके।
आमा मउर महके, कुहु-कुहु कारी कोइली कुहके।
कुन कुन हे केंवची काया, कुन-कुन पवन पुरवाही,
मांघ मुच-मुच मुस्कावत, लजावत हे गवनाही।
पिया बिन बइरी जिया, मया बिन लहके।
आमा मउर महके, कुहु-कुहु कारी कोइली कुहके।
पारा-पारा में नंगारा मंजिरा मांदर धिड़के।
रंग गुलाल पिचकारी, चेलिक मोटियारी थिरके॥
फगुनाही फाग में फगुवा, मन मतंग बहके॥
आमा मउर महके, कुहु-कुहु कारी कोइली कुहके॥