आम्रपाली / विरह / भाग 2 / ज्वाला सांध्यपुष्प
असारह्ह के पहिल बून न, बूझू बड़का मोति।
हिया तरसइत रहत ऊ, जेन्ना पिआसल धरति॥
जेन्ना पिआसल धरति, मुँह बएले मछरी लेखा।
मन-मजूर मङनिए इ, बहके पुरबइया लेखा।
पछिया बहे मताएल, बदरबा जइसे साँरह
जेक्कर उमिर अठार्ह, ओक्करा ला सराप् असार्ह॥1॥
साओन में नद्दि भर जाय, पिया बिन भरे न मन।
रात असगर देत परतर, जइसे कोनो सउतिन॥
जइसे कोनो सउतिन, सखि सऽ खरा सिमान पर।
मन चोटाएल साँप सन, आँख कुदल जुआन पर॥
पुख असरेखा भँइसुर बन, देइऽ खूब ताओन।
आबअ अब हो पिया, जिए न देतो इ साओन॥2॥
भादो के भदबरी में, पानी होए उतान।
काम के बाण अन्हरिया, में चर्हे खूब कमान॥
में चर्हे खूब कमान, पिया कनएलक साल भर।
ओक्कर हाल कि बताउँ, न कनलक हम्मरा हाल पर।
इन्जोरिया सुतल हए, धरति र जेन्ना कादो।
जल्दी आबऽ बाण-सन्, बीतिए जतो ई भादो॥3॥
आसिन हथिया मन मतङ, बउराए जइसे बुन्नि।
तू लाबऽ अप्पन रूपधन, न भेजऽ तू चऔअन्नि॥
न भेजऽ तू चऔअन्नि, पइसा से न चलतो काम।
काम-रूपइया लाबऽ, तब बचतो तोहर नाम॥
राम किरपा से बच्चल, अब न बचतो ई दासिन।
हर लेतो उ रावण, जइसे बीततो इ आसिन॥4॥
कातिक आएल सन-सनाएल, सुर्जमुक्खी न फुलाएल।
गेना-गुलाब कोरिहयाए, जार से मन् घुलाएल॥
जार से मन् घुलाएल, छठो पवनि करे के हए।
आबऽ तऽ पूर्णिमा के, हरिहर क्षतर घुमे के हए॥
पियासल ई तकइअ, चान के जइसे चातक।
भुलल हति खए्ला-पिला, तु भूलऽ न महिना कातिक॥5॥
अगहन में मन-मगन हए, बउआ सुरूज कइसन हए।
देखते एकरा कहइ हति, हम्मर दुल्हा अइसन् हए॥
हम्मर दुल्हा अइसन् हए, तप-ताप से दुर रहइअ।
संकट रहे धरति पर, तइयो अनाइ न भुलइअ॥
पानी ला जाइते, गहुमन बनल् रहे उगहन।
बर दरिद्दर दिन बनल, हए, भयानक रात् अगहन॥6॥
पूस के दिन फुस्स होइअ, जइसे फटक्का पुरान।
मन-चोर करे हरहोर, मारइअ धक्का रात॥
मारइअ धक्का रात, दिन कनखी मार भगइअ।
जार से नुकाएल फल, तोहरे असरा तकइअ॥
हम्मर अन्जान जौवन, देख तू गेलअ रूस।
सुर्यमुक्खि बनल कुच, कटि-सिंह से डरे पूस॥7॥