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आम / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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लाल गुलाबी पकलोॅ आम
कŸोॅ लागै छै मीट्ठोॅ आम
चोरी-चोरी चलें बगीचा
टेवी कोनोॅ खद्दा-खच्चा
तेज धूप जोगवारें सोचतै
ऐन्हा में की अइते बच्चा
ठर्रो पारी सुतलोॅ होतै
मोरका में जोगवारोॅ मंटू राम
तोड़ी खैबै ख़ूब सिनूरिया आम
लाल गुलाबी पकलोॅ आम।
कुछ खैबेॅ, कुछ जेबी में धरवै
माय सें छिपी केॅ राती भी खैबै
माय बाबू के ही डर छै खाली
तहियोॅ चल जे होतै देखी लेबै
बचना छै बस कक्का नजरी से
बीछी लेबै सब गछपक्कोॅ आम
चल जख बाबा केॅ करें प्रणाम
लाल गुलाबी पकलोॅ आम।
आम फलोॅ के राजा छै
एकदम ताज़ा ताजा छै
एकरा समना में सब फीक्कोॅ
चाहै कतनौं मीट्ठोॅ खाजा छै
सब फल छोड़ी अच्छा लागै
गाछी तर गिरलोॅ डम्हक आम
लाल गुलाबी पकलोॅ आम
मन के ख़ूब सुहावै आम।