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आया नहीं निभाना / प्रेमलता त्रिपाठी

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ऐ चाँद तुम न आये मनको लगा फ़साना ।
ये चंद्रिका दिवानी सबकी बनी निशाना ।

पथ भूलते तुम्हीं हो राहें निहारते हम,
यह तारकों का'अंचल कैसे बने सुहाना ।

अभिसार यामिनी का तुम बिन रहा अधूरा,
आँसू नयन दिया क्यों आया नहीं निभाना ।

प्यासे अधर गुलाबी रख शबनमी जो' बूँदे,
यूँ बादलों में' छिपकर गाते रहे तराना ।

सोलह कला तुम्हारी ऐ चंद्र रति-पुजारी,
हे कंत दूज के तुम करते रहे बहाना ।
  
प्रेमिल हृदय हमारा तुमसे महक रहा है,
नगरी तुम्हारे संग हमको यहीं बसाना ।

चंदा गहन बसाये लहरें मचल रही हैं ।
है प्रेम साधना में सागर हुआ दिवाना ।