Last modified on 28 अक्टूबर 2012, at 01:16

आरती पश्‍चात् शिव के तांडव-नृत्‍य में / कालिदास

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  आरती पश्‍चात् शिव के तांडव-नृत्‍य में

पश्‍चादुच्‍चैर्भुजतरुवनं मण्‍डलेनाभिलीन:
     सान्‍ध्‍यं तेज: प्रतिनवजपापुष्‍परक्‍तं दधान:।
नृत्‍यारम्‍भे हर पशुपतेरार्द्र नागाजिनेच्‍छां
     शान्‍तोद्वेगस्तिमितनयनं दृ‍ष्‍टभक्तिर्भवान्‍या।।

आरती के पश्‍चात आरम्‍भ होनेवाले शिव के
तांडव-नृत्‍य में तुम, तुरत के खिले जपा
पुष्‍पों की भाँति फूली हुई सन्‍ध्‍या की ललाई
लिये हुए शरीर से, वहाँ शिव के ऊँचे उठे
भुजमंडल रूपी वन-खंड को घेरकर छा जाना।
इससे एक ओर तो पशुपति शिव रक्‍त
से भीगा हुआ गजासुरचर्म ओढ़ने की इच्‍छा
से विरत होंगे, दूसरी ओर पार्वती जी उस
ग्‍लानि के मिट जाने से एकटक नेत्रों से
तुम्‍हारी भक्ति की ओर ध्‍यान देंगी।