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आरोपों की अभिव्यंजना / अनिमेष मुखर्जी

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आरोपों की अभिव्यंजना में
दोष पश्चिम पर मढ़ा किसी ने
तो वैदेही
अशोक वन में बैठी
बस मुस्कुराती रही
कहीं किसी निर्भया पर
उँगलियाँ उठाई किसी ने
तो कृष्णा
मन-ही-मन केशव को
बस पुकारती रही
समता की बातें हुईं जब
नारी के जीवन में
तो गार्गी
स्तब्ध-सी खड़ी
बस शून्य में निहारती रही।