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आवाज़ / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
रंगीन भीड़ के शोर में
पता ही नहीं चलता
किसने क्या कहा, क्या सुना
हर आदमी सिर पर शोर उठाये हुए
अपने स्वर की तलाश करता है
दूर कहीं एकान्त में
कोई कविता पढ़ी जा रही होती है
तो उसकी मीठी मीठी गूँज
फैल जाती है चारों ओर
और हर आदमी को लगता है
अरे यह आवाज़ तो उसी की है।
-1.11.2014