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आशा-किरण / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जीवन में
प्रतिकूल समय के
कुटिल प्रहारों को
सहने दो !
गत जीवन के
रंग-बिरंगे, मधुमय
सपनों के चित्रों को
मत देखो,
मत सोचो उन पर
दूर कहीं
विस्मृत-सागर के तल में
बहने दो !
एक समय आएगा ऐसा
जब सुख की बरखा होगी,
दुख की खेती मिट जाएगी !
जो इस आशा पर हँसते हैं
उनको हँसने दो !
1941