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आसमाँ पर कौंधती हैं बिजलियाँ / भरत दीप माथुर
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आसमाँ पर कौंधती हैं बिजलियाँ
दे रहा हो कोई जैसे धमकियाँ
दिल लरज़ता है हर इक चमकार पर
क्यों चढ़ाई बादलों ने त्योरियाँ
बेबसी से ताकते हैं आसमाँ
लोग जिनका है सड़क ही आशियाँ
खेत पर बैठा दुआ करता किसान
ख़ैर कर मौला ! बचा ले रोटियाँ
बिजलियों के वार से सहमा है बाग़
अनगिनत झुलसी पड़ी हैं तितलियाँ
बादलों के दिल में एक सैलाब है
रोएंगे ले-ले के लम्बी हिचकियाँ
छिन गई जबसे हमारी "दीप" छत
गिर रही हैं और ज़्यादा बिजलियाँ