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आस्था - 13 / हरबिन्दर सिंह गिल

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आखिर
ऐसे कौन से शब्द हैं
अपना अर्थ खो रहे हैं
परंतु उन्हें फिर भी
बहुत सजाया और
सवारा जाता है।

आजकल की
कूटनीति की दुनियाँ में
शायद इसे
आधुनिकता का पहनावा कहते हैं
और संस्कारों की ओढ़नी
मानव
ओढ़ना भूल गया है
क्योंकि मौलिकता को
रूढ़ीवाद कहकर
ठुकरा दिया जाता है।
परंतु आधुनिक दुनियाँ में भी
मानव न जाने क्यों
भूलता सा जा रहा है
जानते हुए भी
न जाने क्यों
अनजान बन रहा है।
हीरा सदियों पहले भी
मिट्टी के गर्भ से
जन्म लेता था
और लेता रहेगा।

फर्क इतना ही है
थके हुए
मानव की भुजाओं
ने मशीनों का सहारा लिया है
पर अफसोस
कोहीनूर उसे
फिर भी न मिल सका।