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आस्था - 1 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
कैसा समय आ गया है
शब्दों के अपने अर्थ
मानव के स्वयं के।
शब्दों के अर्थ
इतनी तीव्र गति से
बदलते रहे हैं
वाक्य तो वाक्य
पूरे का पूरा पाठ
अपना अर्थ खो रहा है।
समय था, शब्दों का
जीवन में अपना
अर्थ हुआ करता था
जो कभी बदलता नहीं था
क्योंकि इन्हीं शब्दों से
बनती थी, जीवन-राह उनकी सबकी
शब्दों से कर खिलवाड़
नही होना चाहते थे।
पथ-भ्रष्ट जीवन-राह से।