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आह, समापन हुई प्रणय की / सुमित्रानंदन पंत
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आह, समापन हुई प्रणय की
मर्म कथा, यौवन का पत्र!
सुख स्वप्नों का नव वसंत भी
हुआ शिशिर सा शून्य अपत्र!
मनोल्लास का स्वर्ण विहग वह
था किशोरपन जिसका नाम,
उमर हाय, जाने कब आया
और उड़ गया कब अन्यत्र!