आह संगीत / गिरिराज किराडू
बहुत धीमे से और सबको साफ़ नज़र आ रही घबराहट
के साथ उसने पढ़ना शुरू किया एक ट्रेन के
गुज़रने के बारे में खिड़की के सामने से एक लड़की के
देखने के बारे में उस खिड़की से एक ग्रे टी शर्ट के
उस लड़की को पहन लेने के बारे में एक पुरुष के
उस ग्रे टी शर्ट को एक दूसरे शहर में खरीदने के बारे में उस पुरुष के
हाथों से हुए चाकू के एक वार के बारे में उस चाकू के
एक तीसरे शहर में कई बार चलने के बारे में उस तीसरे शहर में
अपने होने के बारे में उस अपने होने की
निशानदेही के तौर पर हमारे होने के बारे में
हमारी तरफ और बढ़ी हुई घबराहट से देखते
हुए उसने पानी पिया और फिर से पढ़ना शुरू किया मैं तुम्हें
प्रेम कर सकता यदि मैं कोई और होता मुझे बहुत सारे
फेरबदल तब करने होते ट्रेन गुज़रने की बात गलत थी खिड़की में
तुम्हारे खड़े होने की बात की तरह चाकू
दूसरे तीसरे नहीं इसी शहर में चला था
मेरे हाथों से उस पूरे नज़ारे को बहुत धीमे से होता हुआ
देखा था मैंने तेज संगीत की तरह काटता हुआ
चाकू आह संगीत हरकहीं हरवक्त बजता हुआ बेमतलब उसे बयान
में होना होता बहुत सारे फेरबदल तब होने होते
तुम्हारे लिए कोई टी शर्ट खुद ही खरीदना होती तब शायद ग्रे ही....