आ रहे हैं बदलाव / अश्वनी शर्मा
अळगोजा, मोरचंग, सांरगी बजाते लोग
अब बना दिये जायंेगे मूर्ति शिल्प
या होटलों में
नाशुकरे लोगों के बीच
दारू के गिलासों से
जुगलबंदी करेंगे
तरसेंगे कद्रदानों की
वाह! को
नहीं दिखेंगे अब
ऊंट की डार को
टोरते राइके
गाड़िया लुहार भी
खो जायेगा कहीं
भेड़ और गाय को लिये डोलता
वो गड़रिया भी भूल जायेगा
मालवा का रास्ता
कुछ चित्रकार जिनकी यादों में
बसे होंगे ये सब
वो उकेरंेगे चित्र इस जीवंतता के
अजनबी लोगों की फौज
अपने ड्राइ्ंग रूम में
टांग लेगी चित्र
आदमी की खत्म होती
प्रजातियों के
रेत देख रही है
इस ताबड़तोड़ हो रहे बदलाव को
अजनबी लोगों की पदचाप से
सिहर जाती है बार-बार
रेत ढूंढ रही है
सिर्फ एक मौका
जब बन जायेगी वो
काली-पीली आंधी
और ढंक देगी पूरे तामझाम को
तब चाहे कुछ न कर पाये
लेकिन सिहरा देगी इस
तामझाम को
पैर के नीचे आकर भी लगेगी
जैसे मुंह में भर गई है
रेत की इस खासियत से अपरिचित
अजनबी लोगों की
फौज तब कोसेगी उस वक्त को
जब पहली बार उन्होंने पांव रखा था
इस रेत के समुद्र पर।