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इंदर री उडीक / राजेन्द्र जोशी

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आभै हेठै
थार समंदर
खेत मांय नीं है बूंद पाणी री
अणथाग भीड़ पड़ी है
खेत रै बिचाळै
बिचक्योड़ै जिनावरां री
धक्का-मुक्की करण री सरधा नीं है
आंख्यां कुचमाद करै
काळी बिरखा बरसावै
हाड, टूट-टूटनै पसरग्या
उणां रै पेट मांय।

गोबर री ठौड़
हाडक्यां रा छेरा करै जिनावर
आभो हंसी उडावै
तानासाह हुयग्यो इंदर
इंदर नीं दीसै बरसण नै
नीं उमड़ै बादळ
हुंकार नीं भरै
हंसी उडावै इंदर
आभै हेठै
आं जिनावरां री
खेत रै बिचाळै।
नीं बरसै तो ना बरस
अेकर मिल, आं जिनावरां सूं
मरणा चावै पण नीं मर सकै
थारी उडीक मांय
खोड़ीली आंख्यां
इंदर री उडीक मांय।