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इंयां ई आछी / सांवर दइया
Kavita Kosh से
आडो खड़कायां बिना ई
एक दिन अचाणचक
म्हैं पूग्यो घरां
टाबर पढ़ै हा
बै बोल्या-बतळाया
कुण है…… कुण है
करती तूं आयी रसोई सूं
आटै सूं भरियोड़ा हाथ थारा
लिलाड़ रो पसेवो पूंछती
केसां नै लारै करती…
देख म्हनै
तूं सोधण लागी ओढ़णियो
पण सुण
ऊभी रह घड़ी भर
ऊभी रह
इंयां ई आछी लागै तूं !