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इक्कीसवीं सदी की शुरुआत / विजय गौड़
Kavita Kosh से
किसी का आना
और किसी का चले जाना
किसी का पैदा होना
और किसी का मर जाना
किसी का डूबना
और किसी का तैरते रहना
किसी का सो जाना
और किसी का जागते रहना,
उत्साहित करते हैं उन्हें
और चाहते हैं वे,
उन्हीं की तरह उत्साहित रहे
परेशानियों में दम तोड़ती दुनिया भी
नशे से भरा उत्साह ही पैदा करेगा
नये खरीद्दार
पैदा होगा नया बाज़ार
और उनके अटे पड़े मालों पर
होने लगेगी ख़ून-पसीने की बौछार
उत्साह के नशे में
एक बेवज़ह, फ़ालतू
बहस शुरु होगी
इसी तरह चलेगा व्यापार
ग्लोबलाईजड पूंजी का
संकट होगा दूर