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इक्कीस / प्रबोधिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'
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तू दिल लगाया न कर ऐसे वैसों से
खूब देखभाल ले कि प्यार आदमी से है या है इसको पैसों से
बात-बात में हर दिल से दिल जोड़ नहीं लेना
हर पूनम की रात के चन्दा को न बधाई दे देना
तू गलत सोचते हो, हर दिल में सच्चा प्यार नहीं होता
हर पत्थर के टूकड़े में पारस-सा सार नहीं होता
तुम गढ़ों पंथ अपना जिस पाठ में कोई विघ्न नहीं हो
तुम चुनो स्वत: जीवन में, जो मित्र कृतघ्न नहीं हो
मैं माना कि दिल देकर तुम दुनिया में छले गए हो
मैं माना कि दिल देकर तुम दुनिया से चले गए हो
फिर भी कुछ ऐसे मिले, शीश सस्ते हैं क्या दे पाऊँ
उनके पूज्य चरण पर जब मैं जन्म-जन्म बलि जाऊँ
तो भी क्या पूरे होंगे उनके मूल्यों के मान
मेरे नेत्र नमित कहते सच नहीं वो है भगवान