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इक्यासी / प्रमोद कुमार शर्मा
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थे हूंता तो
-दादू!
लादू-पादू नीं चरता भाखा रो खेत
कदैई तो चेतो करती भळभळाती रेत
कदैई तो धरती री कूख मांय
सूरज इण ढब आंख खोलतो
कै कूड़ कपट अर साच-झूठ नैं
-पूरो-पूरो तोलतो।
पण :
बीं रा पगलिया तो बांधगी
मां बीं री धाय कळायण
अबै खेलतो फिरै भलांई
इत्तै मोटै आंगणै अेकलो
बीं नैं कांई ठा
पाछो आय ऊभो है लार्ड मैकलो।
(स्व. जनकवि श्री हरीश भादाणी नैं याद करतां थकां)