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इक्यासी के प्रति / विमल राजस्थानी
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जाने तुम कैसे हो, कैसा है मन
घना है कुहासा, नहीं दिख रहा तन
गौरवर्ण है कि श्याम, कुछ भी तो नहीं पता
देगी फल-फूल या कि शूल ‘साल’ की लता
विजय यदि हुई कहीं एटम के बल की
दुनिया को मिलेगी न नयी सुबह कल की
चुनरी लाये हो या साथ में कफन
नैतिकता शनैः-शनैः शेष हो गयी
हार गया मानव, है दानव विजयी
भूमि, अर्थ और भोगवाद रह गये
नीति-धर्म पता नहीं कहाँ बह गये
झर गये प्रसून, बियाबान है चमन
बुद्ध और ईसा का नाम भर रहा
वाणी का तेज, बुझा-बुझा मर रहा
ऐसे जीने से तो मरना अच्छा
पीत पत्र का तो है झरना अच्छा।
आशा का दीप एक भी नहीं रहा
जल्दी से दुनिया पर डाल दो कफन