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इखनी नै तेॅ कखनी / वसुंधरा कुमारी
Kavita Kosh से
ई हवा कैठां सेॅ आवै छै
जेकरोॅ रोइयाँ-रोइयाँ मेॅ आग छै
जेकरोॅ सांसोॅ मेॅ आँधी-विन्डोबोॅ
जेकरोॅ आँखी मेॅ अन्हरिया रात छै
हर डेगोॅ में भूकम्प।
ई हवा कैठां सेॅ आवै छै
कि हमरोॅ सदिष्ष्ष्ष्यो सेॅ खड़ा
पहाड़ो सेॅ मजवूत आश्रम
हिलेॅ-डुलेॅ लागलोॅ छै
कहीं उड़ाय नै लै जाय एकरा
सात समुन्दर पार ।
आवोॅ, हमरासिनी एक्के साथ
एक दूसरा के हाथ पकड़ने
बाँधी लौं एकरा
हाथोॅ सें हाथ मिलैने
देखै छौ
आग आरो बढ़ले जाय छै
बिन्डोबोॅ चढ़ले जाय छै
ई भूकम्प सेॅ तेॅ
आश्रम के नींव उखड़ले जाय छै ।