इच्छा / सुप्रिया सिंह 'वीणा'
चाहै छियै हम्में मेघ बरसे खुब जोरोॅ सें,
फूल सजोॅ तोंय अभिसार रों श्रृंगार बनी केॅ,
हवा बहेॅ चन्दन वन तरफोॅ सें होलै-होलै,
मिट्ठोॅ-मदिर रस बरसे जिनगी में रस घोलै।
सुरजोॅ केॅ कहियोॅ नै घेरेॅ कारोॅ रात अन्हारें,
आरो फैली जाय सगरोॅ दिव्य परकाश उजियारोॅ,
सब हुऐ एक रंग सुखी, दुख में नै कोय काने,
एक एैन्होॅ शक्ति फैले भारत केॅ,
की दुनिये नै खाली कालंे भी लोहा मानें।
महाकाल हुअेॅ मुट्ठी में।
आजू-बाजू काली-दुरगा,
नया निरमानोॅ ले हुए सब देवी तैयार,
चाहै छियै हम्में हुए फेनु राम-कृष्ण अवतार।
देवेॅ करतै तारा सिनी आपनोॅ साधना क,ेॅ
नै खतम होय वाला शक्ति स्वरूप रस बून्द,
नै लेबै हम्में शीतोॅ सें बेदना आॅंखी केॅ लोर।
चलबै एकदम असकल्लोॅ
विजय पथ पावी केॅ रहवै,
जन्म सुख साकार करबै,
भारत के निरमान करबै।
छै आॅंख सौंसे दुनिया रो गड़लोॅ
देशो केॅ मजबूत-मजबूत बनैबैं।