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इज़्ज़तपुरम्-19 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
और मुखर
हो गयी
वासना की
भाषा
घूरती
दूषित
दृष्टियों में
जमा हैं जैसे
रोशनी की जगह
हजारों मन
कीचड़
चींटी की
आँखों से
मन ही मन
नाप - जोख कर रहे
मनचले
खराब नीयत
के अश्लील
बाटों से