भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतनी-सी बात / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
वह देखना चाहती है सिर्फ उसे
मगर देख रही है कहीं और
जबकि वह देख रही टकटकी बांध सिर्फ उसी की ओर
एक-दूसरे को देखने के ये अपने-अपने तरीके हैं
इस तरह सुनने-समझने
मौन-मुखर रहने के भी
प्रेम की पहली सीढ़ी है यह
इसमें न कहकर कहा जाता है
न सुनकर सुना जाता है
न देखकर देखा जाता है
अभी तो बात सिर्फ इतनी-सी है.