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इतवार / अनूप सेठी
Kavita Kosh से
आओ इतवार मनाएँ
देर से उठें
चाय पिएँ
और चाय पिएँ
अखबार को सिर्फ उलट पलट लें
हाथ न लगाएं
सिर्फ चाय का गिलास घुमाएँ
किसी को न बुलाएँ
नहाना भी छोड़ दें
खाना अकेले खाएँ
बाजार ख्रीदारी स्थगित कर दें अगले हफ्ते तक
केरोसिन ले लें दस रुपए ज्यादा देकर
एक पुरसुकून दोपहर हो
ढीलमढाल पसरे रहें
पुरानी एलबम निकालें
पहली सालगिरह याद करें
बातें करें
बचपन की, कालेज की, नाटक की कविताई की
सारे सपनों की धूल झाड़ें
बिस्तर के इर्द गिर्द बिछा लें
इतवार की शाम
आँखों में आँखें डाल सो जाएँ
एक इतवार तो हो
अपने से बाहर निकल
अपने में खो जाएँ।
(1985)