इनसान का नसीबा / इंगेबोर्ग बाख़मान्न / अनिल जनविजय
बादलों के जादुई दुर्ग में बह रहे हैं हम ...
हो सकता है कि हम गुज़रे हों कई स्वर्गों के बीच से ?
चमकती हुई आँखों से कैसे रचूँ मैं वह सब ?
हम समय में गुम हो चुके हैं
ढकेल दिया गया है हमें समय में
रात और अतल गहराइयों के पार उड़ती आत्माएँ हैं हम ।
हो सकता है कि ईश्वर के चारों ओर उड़ान भरी हो हमने
और उसे देखे बिना ही बिजली की गति से गुज़र गए हों हम उसके पास से
इसलिए उसने हमारे बीजों को फेंक दिया
अन्धेरी पीढ़ियों के बीच ।
अब दोषी कौन है ?
हो सकता कि हम बहुत पहले ही मर गए होते ?
बादलों के गोले हमारे साथ ऊपर ही ऊपर उड़ते जाते हैं
हलकी हवा पहले ही हमें लुंज-पुंज कर रही है
और अब आवाज़ टूट रही है और हमारी सांस रुक रही है ...
क्या हमारे अन्तिम क्षण भी जादुई होंगे ?
मूल जर्मन से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल जर्मन में पढ़िए
Ingeborg Bachmann
Menschenlos
Verwunschnes Wolkenschloß, in dem wir treiben...
Wer weiß, ob wir nicht schon durch viele Himmel
so ziehen mit verglasten Augen?
Wir, in die Zeit verbannt
und aus dem Raum gestoßen,
wir, Flieger durch die Nacht und Bodenlose.
Wer weiß, ob wir nicht schon um Gott geflogen,
und, weil wir pfeilschnell schäumten ohne ihn zu sehen
und unsre Samen weiterschleuderten,
um in noch dunkleren Geschlechtern fortzuleben,
jetzt schuldhaft treiben?
Wer weiß, ob wir nicht lange, lang schon sterben?
Der Wolkenball mit uns strebt immer höher.
Die dünne Luft lähmt heute schon die Hände,
und wenn die Stimme bricht und unser Atem steht...?
Bleibt Verwunschenheit für letzte Augenblicke?