भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इन्तजार / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
एक शब्द इन्तजार
एक लम्बा सूखा रास्ता
एक गहरे गढ्डे में सूखी पड़ी नदी
यादों की परते खुरचती
नमी तक पहुंचती आवाज
मंदिर में बेजान जलता दिया
कांपती जिंदगी की लौ
तकिये में मौन पड़ी हिचकी
दस्तक पर हहराता कलेजा
यकीं पर बरसो से एक ठंडी
पड़ी आग
इन्तजार एक शब्द नही
एक रुदन है
सूखे चेहरे पर खारे आँसूओं
का थका सा समन्दर...