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इन्द्र / वीरेन डंगवाल

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इन्द्र के हाथ लम्बे हैं

उसकी उंगलियों में हैं मोटी-मोटी

पन्ने की अंगूठियाँ और मिज़राब

बादलों-सा हल्का उसका परिधान है

वह समुद्रों को उठाकर बजाता है सितार की तरह

मन्द गर्जन से भरा वह दिगन्त-व्यापी स्वर

उफ़!

वहाँ पानी है

सातों समुद्रों और निखिल नदियों का पानी है वहाँ

और यहाँ हमारे कंठ स्वरहीन और सूखे हैं।