भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इबादतगाहें / पंछी जालौनवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसने दिलके काबे में
नमाज़ अदा की
इसने भी अपने मन का
हरिद्वार खोला
तसव्वुर में खुल गया सारा
अंतस का गुरुद्वारा
महसूस किया तो पता चला
हर लम्हें की फ़रयाद है
वरक़ वरक़ जीने का
इशु मसीह से आबाद है
पड़े रह गये इबादतगाहों में
खौफ़ के सब ताले
और अपने रब से
मिलके लौट आये
अपने रब के मतवाले॥