भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इबादतगाहें / पंछी जालौनवी
Kavita Kosh से
उसने दिलके काबे में
नमाज़ अदा की
इसने भी अपने मन का
हरिद्वार खोला
तसव्वुर में खुल गया सारा
अंतस का गुरुद्वारा
महसूस किया तो पता चला
हर लम्हें की फ़रयाद है
वरक़ वरक़ जीने का
इशु मसीह से आबाद है
पड़े रह गये इबादतगाहों में
खौफ़ के सब ताले
और अपने रब से
मिलके लौट आये
अपने रब के मतवाले॥