भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इलाकै रो आदमी / निशान्त
Kavita Kosh से
जद जीतै कोई
इलाकै रो आदमी
इलाकै में
और कीं नुंवो
निगै आवै न आवै
बीं री धूूंस
पाटती
अैन निगै आवै।