इश्क़ अल्लाह-1 / नज़ीर अकबराबादी
पहले इस ताजे नबुव्वत<ref>पैग़म्बरी</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह।
साहिबे ख़ल्को<ref>सृष्टि</ref> करामत<ref>चमत्कार</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह।
गुलशन दीं<ref>मज़हब</ref> की तारावत से कहो इश्क़ अल्लाह।
नूरे हक़ शाफ़ए<ref>सिफ़ारिश करने वाला</ref> उम्मत से कहो इश्क़ अल्लाह।
यानी इस ख़त्मे रिसालत<ref>अन्तिम पैगम्बर</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह॥1॥
है जो वह नूरे नबी, शेरे खु़दा, शेरे इलाह<ref>अल्लाह का शेर</ref>।
साहिबे दुलदुलो<ref>दुलदुल वाले</ref> कु़म्बर<ref>हज़रत अली के गु़लाम का नाम</ref> शरफे़ बैतुल्लाह<ref>अल्लाह का घर</ref>।
ज़ोरे दीं,<ref>दीन का ज़ोर</ref> क़ातिले कुफ़्फ़ार<ref>काफिर</ref>, मुहिब्बो<ref>प्रेम करने वाला</ref> की पनाह।
यानी वह हैदरे कर्रार,<ref>शत्रु पर बराबर आक्रमण करने वाले हजरत अली</ref>, अली, आली जाह।
हर दम उस शाहे विलायत<ref>ऋषि या वली होने का भाव</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह॥
और वह है जिस से हरा बाग़ इमामत<ref>पेशबाई</ref> का चमन।
सब्ज़-ए-पोश चमन जन्नते फ़िर्दोस हसन।
ज़ह्र ने जिसका जु़मर्रुद<ref>पन्ना</ref> सा किया सब्ज़ बदन।
याद कर मोमिनो<ref>ईमान वालों</ref> उसका वह हरा पैराहन<ref>लिबास</ref>।
सब्ज़ऐ बागे़ इमामत से कहो इश्क़ अल्लाह॥3॥
और वह गुल जिस से है गुलज़ार शहादत<ref>गवाही</ref> का खिला।
ले गए दश्ते बला में जो उसे अहले जफ़ा<ref>जुल्म करने वाला</ref>।
तीन दिन रात का प्यासा वह बहादुर यक्ता।
लश्करे शाम को ललकार के तनहा<ref>अकेला</ref> वह लड़ा।
गोहरे<ref>मोती</ref> दुर्रे शुजाअत<ref>बहादुरी</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह॥4॥
और वह जिस मर्द का है नाम शहे जै़नुलअबा<ref>हज़रत इमाम हुसैन</ref>।
कर्बला<ref>जहां पर हज़रत इमाम हुसैन शहीद हुए</ref> में वह अगर आह का शोला करता।
जल के लश्कर वह सभी ख़ाक सियाह हो जाता।
पर सिवा हक़ की रज़ा उसने न कुछ दम मारा।
उस जवां मर्द की हिम्मत से कहो इश्क़ अल्लाह॥5॥
बाक़रो, जाफ़रो, काज़िमो रज़ा शाहे शहां।
और तक़ी नूर नबी और वह नक़ी क़िब्लऐ जां।
असकरी मेहदीओहादी वह इमामे दौरां।
हैं ज़माने में यही बारह इमाम ऐ यारां।
सब हर एक साहिबे इज़्ज़त से कहो इश्क़ अल्लाह॥6॥
हैं जहां तक कि जहां<ref>संसार</ref> में जो वली<ref>ऋषि</ref> और फु़क़रा<ref>संन्यासी, दरवेश</ref>।
हर दम उन सबके दिलों में है भरा इश्क़ अल्लाह।
और जिस मर्द ने खु़श होके बराहे मौला।
मालो जान दौलतो घर बार तलक बख़्श दिया।
उस सख़ी दिल की सख़ावत<ref>बख़्शिश करना</ref> से कहो इश्क अल्लाह॥7॥
जितने अल्लाह ने भेजे हैं वली पैग़म्बर<ref>ईश्वर का आदेश लाने वाले</ref>।
आरिफ़ो<ref>ईश्वर को पहचानने वाला, जानने वाला</ref> कामिलो<ref>पूरा</ref> दुर्वेशों<ref>फ़कीर</ref> मशायख़<ref>सूफी बुजुर्ग</ref> रहबर<ref>राह दिखाने वाला</ref>।
और जिन्होंने ही फ़िदा हक़ के ऊपर करके नज़र।
राहे मौला में ख़ुशी होके दिया अपना सर।
उन शहीदों की शहादत से कहो इश्क़ अल्लाह॥8॥
हैं जो वह साबिरो<ref>सब्र करने वाला</ref> शाकिर<ref>शुक्र अदा करने वाला</ref> बरजाए<ref>ईश्वर की इच्छा</ref> मौला।
राहे मौला में चले लेके तवक्कूल<ref>ख़ुदा का भरोसा</ref> हमराह।
जाके जंगल में पहाड़ों में लगा हक़ पै निगाह।
दिल में खु़श बैठे हुए करते हैं अल्लाह अल्लाह।
उन जवानों की क़नाअत<ref>थोड़ी चीज़ पर राजी होना</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह॥9॥
वह जो कहलाते हैं दुनिया में खु़दा के बन्दे।
बन्दिगी करते ही करते वह सभी ख़ाक हुए।
ख़ाक भी हो गए पर करते हैं हर दम सिजदे।
हैं कहीं बातिनी लूटे हैं इबादत<ref>आराधना</ref> के मजे़।
दोस्तो उनकी इबादत से कहो इश्क़ अल्लाह॥10॥
और जो वह आबिदो<ref>आराधना करने वाले</ref> ज़ाहिद<ref>सिवाय ईश्वर के दुनियां की इच्छा न रखने वाले लोग</ref> हैं खु़दा की रह<ref>रास्ता</ref> के।
यां के सब ऐशो मजे़ छोड़ दिये रह-रह के।
चिल्ले खींचे हैं मुहब्बत की कमां गह-गह के।
सूख कांटा हुए हर रंजो सितम सह-सह के।
यारो सब, उनकी रियाज़त<ref>परिश्रम, आराधना</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह॥11॥
और जो वह आशिके़ सादिक<ref>सच्चा</ref> हैं जहां में यक्ता।
इश्क़ बाज़ी का लिया नाम पर अपने सिक्का।
गरचें<ref>यद्यपि</ref> माशूक़ की जानिब से हुए जोरो जफ़ा<ref>जुल्मो सितम</ref>।
मर गए तो भी न मुंह अपना वफ़ा<ref>श्रद्धा, वायदा पूरा करना</ref> से मोड़ा।
उनकी जां बाज़ियों<ref>जान पर खेलने</ref> जुरअत<ref>हिम्मत</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह॥12॥
और वह माशूक़ जो हैं नाज़ो अदा में मग़रूर<ref>घमण्डी</ref>।
हुस्न रखते हैं भबूका सा जहां में पुर नूर।
गरचे ज़ाहिर में वह आते नहीं आशिक के हुजूर।
पर वह बातिन<ref>अन्दर</ref> में नहीं अपने ख़रीददार से दूर।
उनकी इस दिल की मुहब्बत से कहो इश्क़ अल्लाह॥13॥
और वह जिनपै हैं अहवाल दो आलम<ref>दुनिया</ref> के खुले।
चलते दरिया में हैं और रूएहवा<ref>हवा पर</ref> पर उड़ते।
चाहें पत्थर के तईं लाल करें नज़रों से।
चाहें अकसीर<ref>लाभदायक</ref> करें ख़ाक को हर दम ले ले।
उनकी सब कश्फ़ो<ref>खोलना</ref> करामत<ref>भेद</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह॥14॥
और वह जो इश्क़ का गुलज़ार<ref>बाग</ref> खिलाता है नज़ीर।
पंजतन पाक का आलम में कहाता है नज़ीर।
रेख्ता<ref>नज़ीर अकबराबादी के काल में उर्दू भाषा के लिए प्रचलित नाम</ref> फ़र्द रूबाई<ref>चतुष्पदी</ref> भी बनाता है नज़ीर।
कह सुख़न<ref>सुखन, कथा</ref> इश्क़ का फिर सबको सुनाता है नज़ीर।
उसके सब हर्फ़ो हिकायत<ref>कहानी, बात</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह॥15॥