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इसी विप्लव में/ अनुपमा त्रिपाठी
Kavita Kosh से
इसी
विप्लव में
कुछ पल को
मौन का स्पर्श
अनहद
साकार
जब होता है
पत्तों सी
सिहरन लिए
छाया बन
आकृति तुम्हारी
अनुभूति मेरी
सगन बन
अलंकृत मन
आलाप बन ,
मेरे साथ साथ रहती है !!
4-यही यात्रा तो जीवन है ...!!
अविराम श्वासों की लय,
स्पर्श ...सिहरन
मौन के
नाद की अविरति ,
अनुभूति की
अभिव्यंजना
अनुक्रम तारतम्य का ,
चंचलता मन की ...
आरोह ,
मुझ से तुम तक का
और अवरोह
तुम से मुझ तक का .....
सम्पूर्णता
राग के अनुराग की
यही यात्रा तो जीवन है !!