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इस छ्लना में पड़ी रहूं / हिमांशु पाण्डेय
Kavita Kosh से
इस छ्लना में पड़ी रहूं
यदि तेरा कहना एक छलावा.
तेरे शब्द मूर्त हों नाचें
मैं उस थिरकन में खो जाऊं
तेरी कविता की थपकी से
मेरे प्रियतम मैं सो जाऊं
अधर हिलें मैं प्राण वार दूं
यदि उनका हिलना एक छलावा.
प्रिय तेरे इस भाव-जलधि में
मैं डूबी, बस डूबी जाऊं
तेरी रसना के बन्धन से
मैं असहज हो बंधती जाऊं
इन आंखों पर जग न्यौछावर
यदि इनका खुलना एक छ्लावा.
सारी चाह हुई है विस्मृत
केवल एक अभिप्सित तू है
प्रेम-उदधि मेरे प्राणेश्वर
मेरा हृदय-नृपति तो तू है
प्रतिक्षण मिलन-गीत ही गाऊं
यदि तेरा मिलना एक छलावा