इस दिल को समझाए कौन / रविकांत अनमोल
इस दिल को समझाए कौन
काँटों पर सो जाए कौन
अब उस के दर जाए कौन
जीते जी मर जाए कौन
कौन उसे फिर याद करे
पहरों अश्क बहाए कौन
दिल पर ग़म का बोझ लिए
गीत ख़ुशी के गाए कौन
मुझ को मिरे तसव्वुर में
ये अशआर सुनाए कौन
इस मसरूफ़ ज़माने में
यादों में खो जाए कौन
दुनिया आनी जानी है
पर पत्थर हो जाए कौन
नींद चैन की सोएगा
बन्दूक़ों के साए कौन
मेरी राह में बैठा है
अपने नैन बिछाए कौन
मेरे मन के आँगन पर
बादल बन छा जाए कौन
डूबे कौन महब्बत में
छोड़ो धोका खाए कौन
इक तेरा दर काफ़ी है
दर-दर ठोकर खाए कौन
तू आँखों के आगे हो
फिर पलकें झपकाए कौन
टूट चुके उन ख़्वाबों की
अब तस्वीर बनाए कौन
इक पाग़ल दिल की ख़ातिर
ख़ुद पाग़ल हो जाए कौन
उसके झूटे वादे पर
सारी उम्र बिताए कौन
पी है तेरी आँखों से
अब हमको बहकाए कौन
दूर सितारों से आगे
मुझको पास बुलाए कौन
वक़त पड़े तो पहचानो
अपने कौन पराए कौन
दिल ही न जिनसे मिलता हो
उनसे हाथ मिलाए कौन
जो होना था हो के रहा
अब उस पर पछ्ताए कौन
वो मुझमें मैं उसमें हूँ
रूठे कौन मनाए कौन
बेटी को अपने घर में
सारी उम्र बिठाए कौन
किसकी गोद में सर रक्खूँ
बालों को सहलाए कौन
देर रात तक परियों की
लम्बी बात सुनाए कौन
बन्द न कीजे दरवाज़ा
जाने कब आ जाए कौन
परियों का है देस निकट
लेकिन लोरी गाए कौन